भटका हुआ एक मुसाफिर

 

भटका हुआ एक मुसाफिर

 दिशा हीन हर राह परि है,

 और भटकता एक मुसाफ़िर।

 बढ़ रहा मंजिल पाने को,

 मुड़- मुड़ कर देखता है फिर-फिर।

 

naitik jha

 दुनिया की नज़रों मे वह,

 भुला, भटका, बेकार रहा है।

 पर उसकी आंखों मे तो,

 सबके हीत हरदम प्यार रहा है।

 

naitik jha

 सपनों की दुनिया मे वह तो,

 ज़मी पे चाँद सितारे लाता।

 पर सपनों के बाहर वह,

 केवल दु:ख़ को ही है पाता।

 

 क्या विचित्र लेखनी है विधि की,

 उसका माँ तक पर अधिकार नहीं है।

 विधि ने छाया दिया है उसको,

 पर उसका घर द्वार नहीं है।

 

 जो जन्मदायिनी माता है,

 वह जिसने दूध पिलाया है।

 उसकी ममता भी बट जाती,

 यह विधि की कैसी माया है।

 

 नीज़ पुर-परिजन को त्याग वह,

 घर-द्वार छोर कर चला हुआ।

 बढ़ता केवल उम्मीद लिये,

 जो हुआ सभी कुछ भला हुआ।

 

 सपनों मे विश्व विजेता वह,

 मन के द्वारे पर हारा है।

 वह जीता बस उम्मीद लिए,

 कि केवल "राम" सहारा है।

 

 लोग बोलते भाग्य लेखनी,

 नर के हांथों मे होता है।

 कुकर्मों के फल को हर,

 नर अपने आंसु से धोता है।

 

swaminathan jha

 होती जो लेखनी नर हांथो मे,

 तो कोई ऐसे रोता क्या ?

 अपने घर को छोर भला,

 कोई फूटपाथ पर सोता क्या ?

 

swaminathan jha

 Sगर होती ये तागत नर हांथों मे,

 तो कोई निर्धन होता क्या ?

 स्टेशन पर भिक्षा को पथिकों की,

 बाट कोई जोता क्या ?

 

 पेट की भुख मिटाने को ही,

 अपमान अनन्त पीता कोई जग में ?

 अपना मान पीकर ही ऐसा करके,

 भला जीता कोई जग में ?

 

 जग की रचना भी बहुत गज़ब है,

 सहाय सबल ही पाता है।

 संतृप्त मनुज पाता हर कुछ,

 गरीबों को सुखी रोटी भी नहीं मिल पाती है।

 

swaminathan jha

 पाते दु:ख को है बस निर्बल,

 जाते है दुत्तकारे दुर्बल।

 शेरों की बली कोई देता क्या,

 बकरों पर जाते है फरसा चल।

 

 क्या होगा उनलोंगों का जिसने जीवन में बांटे थे प्यार

 क्यों उसको करने परे, जीवन के दु:ख से आंखेचार

 क्या वो मंज़िल तक पहूंचेंगे, जिनको खुद रास्ता भटकाए

 जो सही करे पर उसका भी फल गलत सदा केवल पाए।

                                                         ॥आद्याचरण झा॥

 


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